प्रणय के गीत का पहला शब्द
'प्रेम',
मेरे अनुनय विनय संबोधन का साक्षी,
सावन के आगमन से हो रहा बेसुध,
जैसे सागर में उठती हैं लहरें,
जैसे पुरवा भीना कर देती आँचल,
जैसे बादलों के सीने से फूटती हैं बौछारें,
वो ढलते सूरज के धुंधलके में गुम होता दिन..
और मेरी अपने आपसे रूमानी बातें....
फिर छान रही है रात चांदनी मेरे आँगन के नीम से ...
खुली खिड़की अच्छी लगी.....
हर बार सूरज का ढलना अंत नहीं... 'देव'