मेरे बचपन के दिनों की स्मृती में ....
"मैंने जो है आज सँजोया, मीठी यादों का, ये आँगन,
दबी रही इसकी मिट्टी में, स्मृति तुम्हारी सदा संजीवन,
झरने से रहे उठते गिरते, मेरे स्व अर्थ स्वपन अनुपम,
पतझड़ के जाने से पहले कोंपल सा खिल आया बचपन...
"मैंने जो है आज सँजोया, मीठी यादों का, ये आँगन,
दबी रही इसकी मिट्टी में, स्मृति तुम्हारी सदा संजीवन,
झरने से रहे उठते गिरते, मेरे स्व अर्थ स्वपन अनुपम,
पतझड़ के जाने से पहले कोंपल सा खिल आया बचपन...
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