वो .....आयेगा ज़रूर
और ये दरवाजा खुल जायेगा
अपने आप...
प्रीत राह ताकती...
दिए की बाती से बतियाती...
वो मन में बसा है...
ये देह की दिवार....नहीं तो मैं तो उसकी पूरी ...
और इस ह्रदय की गुमसुम सी उड़ान
जुगनू सा मन जगमगाता
इस मधुर रात्रि के तारों सा फैला आँचल
राग राग रग रग में उसका
सिन्दूर सांस में घुलता सा
मंगल सूत्र में लपेटे सपने
उँगलियों में उलझती सर्पिणी
मन का आँगन सोंधी मिट्टी की खुशबू से लबरेज
दरवाज़ा खुला है
लगता है वो हवा का झोंका
इधर से गुजरेगा ज़रूर, चाँद के जाने से पहले.....
और रात मुझे दे जायेगा ...
ek virahini ke mn ke dard ko bahut hi sundar shabdon me likha hai,
ReplyDeleteAaj fir Tum nazar nhi aae,
fir tamannao ke Phulmurjhae
Na jane kin galio me kho gaye ho tum
... Rooh ne wo paa liya jo uska ...
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