आज रात अंगुलियां टेबल लेम्प न बुझा पाईं
मेरी पुरानी डायरी के पन्नों में दबी गुलाब की कली
वक्त के पन्नों के बीच पलकें झुकाए फिर खिल आयी,
ये दिल -ओ - दिमाग पर उमड़ते ख्यालों की लहरों पर तैरते यादों के जुगनू अनगिनत पर रोशन कुछ नहीं कर पाए ,
खिड़की से बाहर तारों की छत और नीचे चारों ओर अँधेरा...
उजाला सिर्फ डायरी के पन्नों पर ,
और गुलाब की सूखी कली पर..
एक दूसरे से अजनबी बनकर रहना कितना कठिन...
मैं आज भी टूटते हुए तारों से कुछ मांगता हूँ ....
उनका मेरी आँखों के सामने टूटना उन्हें मेरा कर्ज़दार बनाये हुए है...
kisi dard ko samajh pana aasan nhi
ReplyDeletehaste hue hr pl bitana aasan nhi