लबालब रेत के तालाब के पास
ओस के मोतियों से बांधी पाल,
पाल पर बस सिर्फ हाथों की लकीरों के,
हिसाब-किताब की बातें,
आज आँधियों की बात पर, रेत के तालाब की लहर की खिलखिलाहट भरी हंसी, निशब्द अंतर्मन में संगीत सी फ़ैली है, उसका कहना है "अब ये आंधी तुम्हारे मेरे पैरों के निशाँ ढँक सकती है मिटा नहीं सकती ...
उधर शाम की लालिमा का सिन्दूर अपनी माँग में भरे, क्षितिज की कोर पर, ओस की पाल, सपनों की ओढ़नी में सितारे काढ रही है...
उसे विश्वास है अपनी प्रीत पर...
कल सोने से लहराते तालाब के किनारे,
मृगजल की जलतरंग खनकेगी दिनभर,
कल 'मैं' तपती रेत, मुट्ठी में भर उडाता, हवाओं की दिशा,
'तुमसे' पूछूँगा,
बोलो तुम कल आओगे ना....
© 2011 Capt. Semant
वो मुसाफिर से तुम यूं क्यों उदास,मैं नदी सी सच भूल ना पाती, बस तुम्हारे इस भँवर में डूब जाने को जी चाहता है,
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखते हो
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ReplyDeleteBolo tum kal aaaoge na( sadiyon se raah dekhti : ek aaas )
ReplyDeletevery nice!
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