एक अध-खुली चिट्ठी.....
सुनो !
दोस्त रहे हो कभी, इस लिए कहता हूँ,
जिस दिन मैं बुझूँ उस दिन तो आ जाना ,
उस बिदाई की घड़ी की कुछ रस्में तुम भी निभा जाना ,
अब तक जितना भी कुछ भला-बुरा,
मेरे हिस्से का, गिना हो तुमने,
कोई बात नहीं,
मैं 'दुश्मन' अब ना रहा,
इतनी 'तस्सल्ली' ज़रूर पाकर जाना ....
© 2012 कापीराईट सेमन्त हरीश 'देव'
Hurt touching sir ji------- allll time superb
ReplyDeletePurnima
Very emotive Semant sir....
ReplyDeleteवाह!!! बहुत गहरा संदेश अब शायद कोई दुश्मन ही ना रहेगा।
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