बहुत कुछ छुपाना चाहा है,
ज़िदगी के पन्नों में,
पर छिपता नहीं,
बात अपने हिसाब की, किताब की है,
उधार लिया भी अपनों से ,
उधार दिया भी अपनों ने,
(क़र्ज़ उनकी उम्मीदों का),
मैं किस कदर बोझिल, ये किस से कहूँ !
सूद में हर रोज़ जिन्दा रहती हैं, मुझसे की गयी अपेक्षाएं....
बढ़ बढ़ कर उठ आता हैं,
मेरे रिश्तों से उठी अपेक्षाओं का सूद ....
ये रिश्तों की उधार सिर्फ मेरे सर ही क्यों....
सिर्फ इस लिए कि, मैं एक स्त्री....?
रिश्तों के फ़र्ज़ से दबी मेरी ज़िंदगी
आज तुमसे कुछ मांगती है,
इस बार मुझसे अपने सूद में मेरी अपेक्षाएं ले लो.....!
बस यूँ ही.... एक बार ऐसा करो,
अपने इस रिश्ते के उधार के सूद में,
इस बार,
इस बार ! मुझसे, अपने सूद में, 'मेरी अपेक्षाएं’ ले लो.....!
© 2012 कापीराईट सेमन्त हरीश 'देव'
ज़िदगी के पन्नों में,
पर छिपता नहीं,
बात अपने हिसाब की, किताब की है,
उधार लिया भी अपनों से ,
उधार दिया भी अपनों ने,
(क़र्ज़ उनकी उम्मीदों का),
मैं किस कदर बोझिल, ये किस से कहूँ !
सूद में हर रोज़ जिन्दा रहती हैं, मुझसे की गयी अपेक्षाएं....
बढ़ बढ़ कर उठ आता हैं,
मेरे रिश्तों से उठी अपेक्षाओं का सूद ....
ये रिश्तों की उधार सिर्फ मेरे सर ही क्यों....
सिर्फ इस लिए कि, मैं एक स्त्री....?
रिश्तों के फ़र्ज़ से दबी मेरी ज़िंदगी
आज तुमसे कुछ मांगती है,
इस बार मुझसे अपने सूद में मेरी अपेक्षाएं ले लो.....!
बस यूँ ही.... एक बार ऐसा करो,
अपने इस रिश्ते के उधार के सूद में,
इस बार,
इस बार ! मुझसे, अपने सूद में, 'मेरी अपेक्षाएं’ ले लो.....!
© 2012 कापीराईट सेमन्त हरीश 'देव'
आदरणीय डॉ. साहेब,
ReplyDeleteधन्यवाद आपका...
आप मेरी दीवार से होकर गुज़रे कुछ वक्त बिताया, मेरे ख्यालों के साथ.....
ये वो जगह , यहाँ साये में धूप खिलती है,
यहीं एक दूकान फूटपाथ पर लगा रखी है..
अपनी हर चीज़ खुले में बिछा रखी है...बस यूँ ही.....नमन साहिब...
उम्दा ऱचना :
ReplyDeleteजिंदगी
हिसाब किताब
मूल सूद
सब छिप गया
क्या स्विस बैंक
यहाँ भी खुल गया?
This comment has been removed by the author.
Deleteआदरणीय सुशील जी, आभार आपका..... नमन....
Deleteबहुत खूबसूरत रचना सर.
ReplyDeleteआपने नारी मन को बखूबी समझा.....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर
अनु
आदरणीय अनु जी..... आभारी हूँ.... धन्यवाद... नमन सेमन्त 'देव'
Deleteशब्दों की जादूगरी से नारी की मनोदशा का बहुत ही सुन्दर चित्र खींचा है बहुत बहुत अधिक पसंद आया आपको बधाई
ReplyDeleteनमन राजेश जी.... धन्यवाद.... 'देव'
Deleteजिंदगी में हिसाब रख पाना मुश्किल है ..
ReplyDeleteBeautiful portrayal of women’s pain!
ReplyDeleteBhaavpurn rachna ! Bahut umda!
ReplyDeletevery beautifully written.
ReplyDeletehow u understand a female's pain?
regards,
http://meenakshi2012.blogspot.in/
संवेदनात्मक अभिव्यक्ति की उत्कृष्टता की पराकाष्ठा !
ReplyDeleteबेइन्तहा ख़ूबसूरत...!
"अपने इस रिश्ते के उधार के सूद में
इस बार ,
इस बार ! मुझसे , अपने सूद में , 'मेरी अपेक्षाएँ' ले लो..."
नारी मनोभाव का सुंदर चित्रण।
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