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An Indian Army Officer retired

Friday, January 18, 2013

चाह.....!
















चाह छुपाये न छिपी,
आँख बोल पड़ी
चेहरा खिल उठा..

मालूम नहीं क्यों,
न जाने क्यों, बस यूँ ह़ी....जाने अनजाने मेरी शर्म तुम पर दीवानी हुयी..

हुआ फिर कुछ यूँ कि, चाह छुपाये, छुपाई ना गयी...

4 comments:

  1. सच में ....चाह छुपाये न छुपी .....सुंदर रचना ...

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  2. Kitna acha ! aur kitna sacha! likhtey hai aap!!

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  3. गागर में सागर... आपके शब्द..!

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