दर्द दिल से जुदा कहाँ होता है,
अश्रु मछलियों के कहाँ सूख पाते हैं,
कभी फूल भी जुदा हुए हैं काँटों से,
जुदा खुशबु भी नहीं फूलों से,
पेड़ों के नाम रख लिए हमने ,
छाँव को किस नाम से बांटोगे,
लहरों की तरह बह रही है मय,
मृगमरीचिका को जाम में कैसे बंधोगे,
ज़िंदगी एक शाम की तरह ढल जायेगी
चलो अपनी परछाईयाँ कुछ लंबी कर लें..
आज हम एक दूसरे के लिए कुछ कर लें...
हाथ पकड़ लें,
कुछ दूर साथ चल लें...
© 2011 कापीराईट सेमन्त हरीश
No comments:
Post a Comment