मैं आज भी ना जाने कितनी रातों,
तार की बाड़ से निकल आम चुरा,
अपने वर्तमान के माली से दूर भाग जाया करता हूँ..
ये सपनों के मौसम में सपने भिगोता हूँ ,
लौट आयी पलट पलट मेरी परछाइयाँ,
छोटे से आँगन में माँ को तरसता हूँ,
अपनी ऊँचाई से गिरने से डरता हूँ,
कौन अब कहेगा, "सम्हालकर चलो भाई ,
इधर दिखा बेटे तुझे चोट तो नहीं आयी..."
तार की बाड़ से निकल आम चुरा,
अपने वर्तमान के माली से दूर भाग जाया करता हूँ..
ये सपनों के मौसम में सपने भिगोता हूँ ,
लौट आयी पलट पलट मेरी परछाइयाँ,
छोटे से आँगन में माँ को तरसता हूँ,
अपनी ऊँचाई से गिरने से डरता हूँ,
कौन अब कहेगा, "सम्हालकर चलो भाई ,
इधर दिखा बेटे तुझे चोट तो नहीं आयी..."
ma ka karz ap kbhi nhi chuka sakte
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