" ये एक विडम्बना ही है कि जो बोरी खरीद सकता है वो उठा नहीं सकता और जो उठा सकता है वो खरीद नहीं सकता"
मैं मेरे गांव से लिपटा,
हर बार बूढ़े बरगद के आँचल में आज भी रो लेता हूँ,
खेल लेता हूँ,
उसके कन्धों ने कभी भी मुझे अंकों में नहीं आँका है !
मैं आज भी किसान होने का गर्व लिए चलता हूँ,
सुबह से शाम तक,
आपके लिए/ अपनी मिट्टी के/ मैदान चीरता हूँ..
तपता हूँ..
पिघलता हूँ
सोना हूँ
हरदम चमकता हूँ......!
" ये एक विडम्बना ही है कि जो बोरी खरीद सकता है वो उठा नहीं सकता और जो उठा सकता है वो खरीद नहीं सकता"
मैं मेरे गांव से लिपटा,
हर बार बूढ़े बरगद के आँचल में आज भी रो लेता हूँ,
खेल लेता हूँ,
उसके कन्धों ने कभी भी मुझे अंकों में नहीं आँका है !
मैं आज भी किसान होने का गर्व लिए चलता हूँ,
सुबह से शाम तक,
आपके लिए/ अपनी मिट्टी के/ मैदान चीरता हूँ..
तपता हूँ..
पिघलता हूँ
सोना हूँ
हरदम चमकता हूँ......!
b'ful
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