का मतलब सम बंध है तो
ये हम दोनो के बीच बराबरी की प्रीत क्यों नहीं
मेरा मन बार बार क्यों ये कहता है कि यह सिर्फ एक बंधन है
"सम-बंध" नहीं...
"सम-बंध" नहीं...
मैं ये मानती हूँ कि प्यार को अधिकार कहना ठीक नहीं
प्यार उन्मुक्त अभिव्यक्ति है,
ऐसा नहीं कि तुम ये नहीं समझते, पर इन दिनों हरदम तुम्हारा अपने आप पर, मुझ पर, अपने रिश्ते पर विश्वास, हिला हुआ सा देखती हूँ,
ये कोई वजह है या वहम ,
या तुम्हरा अपना खोखला खालीपन जो तुम्हें डंसता है,
एक बार खुल कर क्यों नहीं कह देते,
ये तिल तिल टूटना मुझे भी अच्छा नहीं लगता
पुतलियों की प्रीत कठपुतलीवाले की अंगुली पर नाचती है
लोगों की, तुम्हारी, खुशियों के लिए हर बार मैं ही मैं कठपुतली बनी रहूँ ये अब नहीं होता,
तुम ईश्वर नहीं ठीक... पर मैं तो इंसान हूँ....
मेरे मन पर इतिहास ने ये हरदम साबित किया है,
कि जिसका प्यार कम होता है , रिश्ते पर उसकी पकड़ ज्यादा होती है..
वो जैसे चाहे जब चाहे अपने मन की करवा लेता है प्यार की दुहाई दे कर ,
क्योंकि कम चाहने वाला जानता है दूजे की कमज़ोर नब्ज़…
मौन मेरा ही क्यों होता है हमेशा नम मेरी आँखों में...
तुम कब मौन हुए मेरी आँखों में नमी के लिए, ये याद करती हूँ तो वो क्षण संदल से पलकों की कोर पर महक जाते हैं,
जब “संबंध” से पहले
तुम भी प्रीत में बराबरी से झुकते थे....
ye bilkul sch hai semantji,aurat ko purush hmesha se katputli ki trh nchata aaya hai,jb aurat un bandhno ko tor de to sara smaj uske virodh me khada ho jata hai,ye to sch hai ki jyadatar purush vivah bandhan me bandhe ke bad aurat ko sirf or sirf uski aawshyktaon ko pura krne ka sadhn matr smjhne lgta hai
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