अपनी उम्मीदों की धरती
अपनी आशाओं का आकाश ...
हर मौसम में अब इस मन की बंजर खेती को एक बारिश का इन्तेज़ार रहता है,
ये नीला अम्बर अब हर प्रहर तुम्हारे रंग भरता है,
इन्द्रधनुष के... चांदनी के... अमावस के ...
कभी प्यास तुम मुझही को लगते हो,
कभी मैं तुम्हें पीकर प्यासी होने लगती हूँ,
अब तो ये शाश्वत है कि, लौटा नहीं सकते तुम मुझे,
मेरे हिस्से की ज़मीं, मेरा आकाश
क्योंकि अब मैं नहीं हूँ मैं ...
मैं तो हो गयी हूँ तुम,
सच एक बार फिर कहो,
और बार बार कहो कि,
"तुम हरदम मेरे मन के कच्चे आँगन की खुशबू बनकर रहोगे..."
Awesome !!
ReplyDeletebahut hi acha likhtey hai aap!
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