मुझे लगता है तुम्हारा, मेरे सच पर शक करना झूठा है,
क्या यूं ही जीवन बीतेगा,
अग्नि परीक्षा देते हुए,
इस व्यथा कथा में सीता का पात्र यदि मेरा,
तो तुम राम क्यों नहीं, अश्वमेघ की वेदी पर तुम "अकेले" क्यों नहीं,
मेरी मृत संवेदनहीन स्वर्ण मंडित प्रतिमा से किस छल को सत्य सिद्ध करना चाहते हो,
मेरे वेदना से पीले चेहरे पर हरदम घुटी घुटी हँसी का निर्णय तुम्हारा क्यों,
मैं क्यों सदा सिर्फ कृत्रिम शृंगार करूँ,
मेरा ह्रदय स्वतंत्र क्यों नहीं,
संवेदना तुम्हारी मेरी वेदना का मरहम क्यों नहीं...
Yeh Kya ?
ReplyDeleteAap ko kaafee padha baar baar padha...
ReplyDeleteEk bhartiya ya kisee bhee stree ke hriday ke bhavnatmak pahloo ko shabdon mein sametne kee adbhut shaktee hai aap mein
Hamesha apne aap ko judaa hua mahsoos kartee hoon....
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ReplyDeleteGarm seese se...katu satya ko paribhashit karte...aapke shabd...yun hii...
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