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An Indian Army Officer retired

Wednesday, August 3, 2011

“मैं सांवली हूँ न इस लिए अँधेरा है मेरे चारों ओर चेहरे पर...”


उसने आज बात करते हुए कहा मैं सांवली हूँ न इस लिए अँधेरा है मेरे चारों ओर चेहरे पर...
इस घने अँधेरे में उसके हाथों की लाख की  चूडियों के कुछ सितारे चमकते हैं और रोशन हो  जाती है उसके चेहरे पर एक मृत अभिलाषा ...
यौवन की उमंगों के घुट जाने को वो नाहक साथ लिए चलती है...
वो सोने की गुडिया शायद नहीं जानती ताप से ही कनक निखरता है,
लाख की चूडियों की खनक सुरीली नहीं होती,
चूडियाँ कांच की इतनी सख्त नहीं होतीं,
कमी किसमे नहीं होती...
उसने आज बात करते हुए कहा मैं सांवली हूँ न इस लिए अँधेरा है मेरे चारों ओर चेहरे पर...
उसने तितलियों का अहसास छोड़ दिया दिया है,
अपने पुराने रंग बिरंगे अनोखे परिधानों को वक्त के बक्सों में बंद कर लिया है
वो तितलियों की शहजादी शायद नहीं जानती कि फूल अभी भी खिलते हैं,
खिड़कियाँ बंद कर लेने से मौसम नहीं बदलते,
बारिश सब कुछ  धो देती, निर्मल कर देती ,
पर फिर भी कहीं कीचड़ से धरती सनी होती,
कमी किसमे नहीं होती,
उसने आज बात करते हुए कहा मैं सांवली हूँ न इस लिए अँधेरा है मेरे चारों ओर चेहरे पर...

उसको वक्त के एकांत ने घेरा है
तभी तो उसके चेहरे पर एक और चेहरा है,
धूप ने उसे हर बार छला है,
उसका चेहरा बारिशों के मौसम में गला है,
वो गहरी झील ये नहीं जानती कि झरनों के साथ बहते अनगढ़ पत्थर एक दिन शिव बन जाते हैं,
खुद सिमट जाने से दायरे कम नहीं हो जाते,
चाँद और सूरज अक्सर चमकने के पर्याय माने  जाते,
पर फिर भी ग्रहण की बातें उनके लिए भी हैं होती,
कमी किसमें नहीं होती,
उसने आज बात करते हुए कहा मैं सांवली हूँ न इस लिए अँधेरा है मेरे चारों ओर चेहरे पर...

5 comments:

  1. I m Lovin it.........

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  2. धन्यवाद ..... अनाम प्रशंसक .....
    असल में I m Lovin it कुछ चुराया हुआ सा नहीं है...

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  3. Kya Sanwali itni bha gayee iss lekhak ko !!
    Bahut khoob .......

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  4. Tabhi to uskey chehrey pe ek chehra hai ! very nice!

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  5. बहुत खूब , बहुत ही सुन्दर...अंधेरों में चाँदनी के समान , शीतलता और रौशनी देती सी कृति ! कोई भावना अछूती नहीं छूटी आपकी कलम से कविराज....

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