गगन का चाँद छुप
छुप कर,
रात रात भर
मुझसे बातें करता है,
मेरी बातें सुनता है सहमा सा,
मेरी बातें सुनता है सहमा सा,
साथ साथ अपनी
भी कुछ-कुछ कहता है पगला सा,
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता है,
और फिर बेचैन हो न जगता, न सोता है,
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता है,
और फिर बेचैन हो न जगता, न सोता है,
उसने अपने
इर्द गिर्द न जाने कितने जाल बुन लिए हैं,
इस लिए न ज़मीं
पर गिरता है, न आसमान में उड़ पाता है,
कभी कितना
डूबा हुआ था समंदर में, कि मोतियों से खेल खेलता था,
मोती ही मोती
बाँटता था, लहरों पर उछलता था,
गर्भ में डूब इधर
उधर भागती मछलियों के रंग पकडता था,
हँसता रहता
था, परिंदों से बातें करता था,
एक बादल को उसकी
ये बात पसंद ना आई,
उसने बातों ही
बातों में, बातों की बिजलियाँ गिरायीं,
चाँद दूर से
ही सहम गया,
बस बादल का
मकसद निकल गया........
Jaan kar kisika dard
ReplyDeleteapni rachna main dhaal lete ho
kon ho tum kahan se aaye ho?
Kya baat hai.......
ReplyDeletewhite clouds,on the mountains
ReplyDeleteSun is arms and rain is tears...
बेहद ख़ूबसूरत और सच...!!
ReplyDelete"चाँद दूर से ही सहम गया
और बदल का मक़सद निकल गया.."
कितना छिपा दर्द व्यक्त कर दिया इन शब्दों ने !