वह कोयल सी गीत गाती, गुनगुनाती, वादियों में घूमती,
बसंत का मधुर पान करती, अल्हड झूमती,
अपनी यादें जतन से भूलती,
अपने भूत से
बहुत देर दूरी रही,
उसने जो चाहा था सो मिल ना सका, शायद कोई मज़बूरी रही,
बीते दिनों की याद की बदली एक बार फिर से जब छाने लग गयी,
तब बक्से में रक्खी उसकी डायरियों के फूलों से फिर से महक आने लग गयी,
उसने जो चाहा था सो मिल ना सका, शायद कोई मज़बूरी रही,
बीते दिनों की याद की बदली एक बार फिर से जब छाने लग गयी,
तब बक्से में रक्खी उसकी डायरियों के फूलों से फिर से महक आने लग गयी,
वह आत्म-विस्मृत भटकनों में,
भटकती
जीने लगी
फिर भूल कर सुध-बुध, अपने आप से प्रश्न करने लगी, मगन-मन, मौन रहने लगी
फिर भूल कर सुध-बुध, अपने आप से प्रश्न करने लगी, मगन-मन, मौन रहने लगी
अदभुत रचना है, सेमंत जी आप बहुत ही सुंदर लिखते है, बधाई.
ReplyDeleteTranslate from: Estonian
ReplyDeleteअस्तित्व खुद का dhoond रही हूं ...
अपने आप से pareshaan हूं
मैं क्या chahati हूँ ...
खुद भी नही janati ....
koi humse naraaz hai ....
ReplyDeleteaap hi batayain?
Hum kaise unhe manaye?
बेहद ख़ूबसूरत..!
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