स्वप्न अभी तक हर बार आंखों में तैरता रहा,
पर इस बार उसकी नींव, तेज बाढ़ ने हिला दी,
वो हर साल दीवाली के बहाने से आँगन पर सफेदी की चादर बिछा देती थी
घर के चेहरे की रौनक बढ़ा चढ़ा देती थी,
पर इस बार बहुत तेज तूफ़ान और बारिश लगातार चलती रही है,
उसने हर बार अपनी पसलियों की मजबूत दीवार पर बड़ा नाज़ किया है,
पर इस बार बदलियों की नज़र कुछ बदली बदली सी है,
आसमान से बरसना था आँखों पर झूली हैं...
पलकें अब बाँध नहीं रोक पायेंगी
लगता है इस बार ये इमारत डूब जायेगी...
Tears and rainss semidivine.....
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