गुण स्थाई होते हैं
काया नहीं
यही काया एक दिन कृशकाय
तो दूसरे दिन
कंकाल हो जाती है |
इन परिवर्तनों में
समय कब निकल जाता है
पता ही नहीं चल पाता है,
कभी विचार नहीं किया है अपने बारे में...
बस मालूम है मुझे कि ,
जब कभी बादलों में गर्द-गुबार दिखता है,
तो बारिश के साथ आँधी जरूर आती है,
जोर की हवाएँ पेड़ों को झकझोर देतीं हैं,
ऐसे में गुज़रे हुए कल के टूटे हुए मकान के सामनेवाला बरगद बड़ा काम आता है..
अपनी यादों का कम्बल लपेटे उसकी छाँव तले गर्माना, इस कठोर ठण्ड में बहुत भाता है,
वैसे जानता हूँ मैं भी कि बीता हुआ पल कब वापस आता है...
पके फल तो गिर ही जाते हैं इन तूफानों में,
पर कभी कभी कच्चा भी डाली पर रह नहीं पाता है...
अपनी यादों का कम्बल लपेटे उसकी छाँव तले गर्माना,.... aur....
ReplyDeletefantastic.
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