हम दोस्ती में तेरा हाथ क्या थाम बैठे,
जरा सी बात पर सब लोग यूँही कोहराम कर बैठे,
ये क्यों है कि आज रिश्तों से डर लगता है,
कुछ तो है कि हर पाकीज़गी हराम कर बैठे ....
Wednesday, June 8, 2011
बादल ने फिर सूरज को छुआ है,
शाम का फिर धुंधलका हुआ है,
अब झूठ सच मौसम के मिजाज लगते हैं,
सीख लिया है ज़िंदगी एक जुआ है...
Sunday, June 5, 2011
मेरे बचपन के दिनों की स्मृती में .... "मैंने जो है आज सँजोया, मीठी यादों का, ये आँगन, दबी रही इसकी मिट्टी में, स्मृति तुम्हारी सदा संजीवन,
झरने से रहे उठते गिरते, मेरे स्व अर्थ स्वपन अनुपम,
पतझड़ के जाने से पहले कोंपल सा खिल आया बचपन...
Friday, June 3, 2011
मैं कोशिश कर मेरे बिछुडे आँगन की मिट्टी समेट लाया हूँ, छोटे छोटे परिंदों का आस्मां समेट लाया हूँ, ये मेरे खोये बचपन के फूलों की खुशबू है , दुनिया के बाजार से खिलौने समेट लाया हूँ......
मैं समय की रेत पर ही खेलता रह गया,
ना जाने कब वक्त ने यादों के मकान पर दीवारें खींच दी......
यह कितना अच्छा है कि तेरी मुठ्ठी में मेरी अंगुली के निशाँ बाकी हैं...
वरना कौन याद रखता है हाथ छूट जाने के बाद....