Monday, September 9, 2013
Tuesday, January 29, 2013
प्रीत कभी मरती नहीं...
मुझे मालूम है और तुम भी जान गए हो, कि,
प्रीत कभी मरती नहीं...
बस मुरझा जाती है,
बसंत के बाद फूल झडे पेड़ों को पानी पिलाना भूले - तुम भी , मैं भी,
फिर ये भूलने की भूल स्वीकार भी नहीं कर पाए - तुम भी , मैं भी....
अब तुम मान जाओ तो , हम मिलकर ,
चलो एक बार फिर,
अपने आँगन के बगीचे में जाते हैं ,
क्यारियों में गिरी गुलाबों की हर पंखुड़ी चुन ले आते हैं,
फिर से घर महकाते हैं.......
बस यूं ही....एक बात कहनी थी तुमसे,
मैंने कल रात भर ,
रात !
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में ले गुजारी है....
अपने ख्वाब में..... !
प्रीत कभी मरती नहीं...
बस मुरझा जाती है,
बसंत के बाद फूल झडे पेड़ों को पानी पिलाना भूले - तुम भी , मैं भी,
फिर ये भूलने की भूल स्वीकार भी नहीं कर पाए - तुम भी , मैं भी....
अब तुम मान जाओ तो , हम मिलकर ,
चलो एक बार फिर,
अपने आँगन के बगीचे में जाते हैं ,
क्यारियों में गिरी गुलाबों की हर पंखुड़ी चुन ले आते हैं,
फिर से घर महकाते हैं.......
बस यूं ही....एक बात कहनी थी तुमसे,
मैंने कल रात भर ,
रात !
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में ले गुजारी है....
अपने ख्वाब में..... !
© 2013 Capt. Semant
Monday, January 28, 2013
वक्त........!
वक्त !
ये हर बार तुमसे एक ही लडाई ,
तुम्हें मानूं या अपनी सुनूं ,
तुम्हारी अंगुली पकडूँ, साथ चलूँ,
या,
अपना रास्ता चुनूं....
इस उधेड़ बुन में बस यूं ही खड़ा रह गया हूँ ,
अपने स्वप्नगृह के कच्चे आँगन में...दीवारें छोटी हो या बड़ी, दीवार ही होती हैं...
पर स्वप्न बालक से...
रोज़ इस पार उस पार कूदने का खेल खेल लेते हैं,
और, मैं !
दरवाज़े से तुम्हें रोज़ बस यूं ही ताकता रह गया हूँ,
पक्की सडक वाली गली से होकर गुजरते, जाते हुए...
न तुम ही कभी रुके,
न मैं ही कभी चल पाया, इतने लम्बे कदम, जितने तुम्हारे..!
© 2012 Capt. Semant
ये हर बार तुमसे एक ही लडाई ,
तुम्हें मानूं या अपनी सुनूं ,
तुम्हारी अंगुली पकडूँ, साथ चलूँ,
या,
अपना रास्ता चुनूं....
इस उधेड़ बुन में बस यूं ही खड़ा रह गया हूँ ,
अपने स्वप्नगृह के कच्चे आँगन में...दीवारें छोटी हो या बड़ी, दीवार ही होती हैं...
पर स्वप्न बालक से...
रोज़ इस पार उस पार कूदने का खेल खेल लेते हैं,
और, मैं !
दरवाज़े से तुम्हें रोज़ बस यूं ही ताकता रह गया हूँ,
पक्की सडक वाली गली से होकर गुजरते, जाते हुए...
न तुम ही कभी रुके,
न मैं ही कभी चल पाया, इतने लम्बे कदम, जितने तुम्हारे..!
© 2012 Capt. Semant
कल रात.........
कल रात अपनी ‘तन्हाई’ से ये कहना भूल गया कि,
मैं अकेला हूँ,
बस ये बात छुपी नहीं और तुम्हारी यादों ने घेर लिया,
रात भर उन दो पलों की मुलाकातों के ढेर सारे फूल पिरोते रहे,
मैं और तुम्हारी याद,
फिर बिखर गया चांदनी की चादर पर स्वप्न का सिन्दूर....
बस यूं ही,
फिर एक बार, बिखर गया चांदनी की चादर पर स्वप्न का सिन्दूर....
और ! ये बात मैंने मान ली,
कि यादें !
तुम्हारे, मेरे और गुज़रे पलों के बीच एक पगडंडी हैं.....
© 2012 Capt. Semant
मैं अकेला हूँ,
बस ये बात छुपी नहीं और तुम्हारी यादों ने घेर लिया,
रात भर उन दो पलों की मुलाकातों के ढेर सारे फूल पिरोते रहे,
मैं और तुम्हारी याद,
फिर बिखर गया चांदनी की चादर पर स्वप्न का सिन्दूर....
बस यूं ही,
फिर एक बार, बिखर गया चांदनी की चादर पर स्वप्न का सिन्दूर....
और ! ये बात मैंने मान ली,
कि यादें !
तुम्हारे, मेरे और गुज़रे पलों के बीच एक पगडंडी हैं.....
© 2012 Capt. Semant
Sunday, January 20, 2013
Friday, January 18, 2013
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