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An Indian Army Officer retired

Wednesday, September 21, 2011


उसे ज़मीन का पता हो कैसे
बुलंदियों में वो जो खो गया है..
अपनों से दूर ले गए उसके ख्वाब उसे
वो कामयाबी अकेले ढो रहा है...

Tuesday, September 13, 2011

वो .....आयेगा ज़रूर .......


वो .....आयेगा ज़रूर
और ये दरवाजा खुल जायेगा
अपने आप...
प्रीत राह ताकती...
दिए की बाती से बतियाती...
वो मन में बसा है...
ये देह की दिवार....नहीं तो मैं तो उसकी पूरी ...
और इस ह्रदय की गुमसुम सी उड़ान
जुगनू सा मन जगमगाता
इस मधुर रात्रि के तारों सा फैला आँचल
राग राग रग रग में उसका
सिन्दूर सांस में घुलता सा
मंगल सूत्र में लपेटे सपने
उँगलियों में उलझती सर्पिणी
मन का आँगन सोंधी मिट्टी की खुशबू से लबरेज
दरवाज़ा खुला है
लगता है वो हवा का झोंका
इधर से गुजरेगा ज़रूर, चाँद के जाने से पहले.....
और रात मुझे दे जायेगा ...

Saturday, September 10, 2011


निगाह छलने लगे तो ठीक...
वरना बरसते मौसम में भीगी किताब के पन्ने मुड़े मुड़े से ..... 
सूखे फूलों की कहानी का हिसाब करते रहते हैं.... 
सवाल जवाब गर्द के आगोश में दबे रहते हैं...
कुछ नहीं कहते पर कुछ तो कहते हैं....

Tuesday, September 6, 2011

वक्त यूं ही मुट्ठी में बंद किया होता
उसके हाथों में अपना हाथ लिया होता...
कुछ बात तो है इस बात में कि इतनी दूर होकर भी ऐसा लगता है कि  'ऐसा हुआ होता तो ऐसा हुआ होता....."

Monday, September 5, 2011

एक बादल...


यूं तो हो कि  उसके होने का अहसास हरदम बना रहे 
वो दूर ही सही उसका स्पर्श बना रहे
वो अपनी छत पर हर सुबह काली ज़ुल्फ़ लहराता रहे
एक बादल हर रात मुझमें चांदनी छानता रहे

Saturday, September 3, 2011


दर्द सीने में छिपा रक्खा है,
हमने अश्कों को महबूब बना रक्खा है......