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An Indian Army Officer retired

Friday, November 4, 2011

एक खुशी कहती थी जो हरपल...


एक खुशी कहती थी हरपल, 
तुम बिन मैं, मर जाऊंगी,
आज वो खुशी-खुशी,
किसी और के नाम हो गई,
मैं सुबह का कोहरा पिघलते देखता रहा, जंगलों के घनेरे में, 
मालूम ही न हुआ कैसे, कब ये शाम हो गयी 

1 comment:

  1. Sham ho gayi ... lekin savera door nahi...

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