प्रणय के गीत का पहला शब्द
'प्रेम',
मेरे अनुनय विनय संबोधन का साक्षी,
सावन के आगमन से हो रहा बेसुध,
जैसे सागर में उठती हैं लहरें,
जैसे पुरवा भीना कर देती आँचल,
जैसे बादलों के सीने से फूटती हैं बौछारें,
वो ढलते सूरज के धुंधलके में गुम होता दिन..
और मेरी अपने आपसे रूमानी बातें....
फिर छान रही है रात चांदनी मेरे आँगन के नीम से ...
खुली खिड़की अच्छी लगी.....
हर बार सूरज का ढलना अंत नहीं... 'देव'
This is beautifully penned... Rains... Sea... Sand...And the Moon... All are synonymous with love abound!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteWow what a beautiful poem. I love each and every line of this .
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