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An Indian Army Officer retired

Friday, August 12, 2011

वो बन के धुआं घेर न पाती मुझको...


वो बन के धुआं घेर न पाती मुझको
वो बादल में छुपे चाँद सी नजर न आती मुझको
कई बार लगता है कि वो है ही नहीं
कई बार लगता है कि मैं हूँ ही नहीं....
उसके घने स्याह बालों में छुपा मैं
मुझमे छुपी वो...
ये वक्त और वजह की पगडंडियाँ न जाने कैसे किसी बड़ी सड़क से दूर निकल जाती हैं ....
छोटे से घरोंदे तक...
उसके घेरे में उठे धुएं के पार..
हर शाम से अगली सुबह तक...

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