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An Indian Army Officer retired

Friday, August 19, 2011

रेत की डगर


पगली सी,
अपने चेहरे पर खींची लकीरों को, हवाओं से संवारती है,
चूमती है पवन को और,
लहर लहर बलखाती है,
ये रेत की डगर है, 
मेरे गांव से तेरे शहर तक,
बार बार जाती है 
मिट जाती है...

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