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An Indian Army Officer retired

Tuesday, August 23, 2011

स्वप्न को कोई कब छीन पाया है....

बस इतना कहना चाहता हूँ

कि क्या तुम इतना भी नहीं जानते
कि बिना भाव के शब्द
खोखले होते हैं ....
उनके आरपार देखा जा सकता है
इतना आरपार कि फिर कहनेवाले को
आजमाने की जरूरत भी नहीं रहती..
मैं भी तुम्हें अब शायद न आजमाऊं...
कुछ खोखली हो चुकी है,
तुम्हारे शब्दों की किताब...
तभी तो मैंने कुछ पन्नों में जो,
गुलाब दबा रखे थे, वो गिरे पाए फर्श पर....
मैं तब भी तुम्हारे स्वप्न की खुशबू से महकता था,
मैं अब भी उसी खुशबू से महकता रहूँगा,
खुला आकाश रेत से मिलने झुकता रहेगा,
हवा रेत पर लिखे पैरों के निशान मिटाती रहेगी,
वो खुले काले बादल फिर लौटेंगे,
इस बार सिर्फ मेरे गाँव को भिगोने,
किताबों से गिरे गुलाब के फूलों की पंखुडियां,
फिर से हो जायेंगी, भीनी भीनी...
इन मौसमों ने हर बार लौट कर
मेरे विश्वास का हाथ थामा है...
स्वप्न को कोई कब छीन पाया है....

3 comments:

  1. kya phir tum apne स्वप्न... baant paoge?
    kya phir unka hisssa banaaoge?

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  2. Wow !! I m lovin it......

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