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An Indian Army Officer retired

Wednesday, July 11, 2012

एक अध-खुली चिट्ठी.....




सुनो ! 
दोस्त रहे हो कभी, इस लिए कहता हूँ,
जिस दिन मैं बुझूँ उस दिन तो आ जाना ,
उस बिदाई की घड़ी की कुछ रस्में तुम भी निभा जाना ,
अब तक जितना भी कुछ भला-बुरा, 
मेरे हिस्से का, गिना हो तुमने,
कोई बात नहीं,
मैं 'दुश्मन' अब ना रहा, 
इतनी 'तस्सल्ली' ज़रूर पाकर जाना  ....



© 2012 कापीराईट सेमन्त हरीश 'देव'

3 comments:

  1. Hurt touching sir ji------- allll time superb


    Purnima

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  2. वाह!!! बहुत गहरा संदेश अब शायद कोई दुश्मन ही ना रहेगा।

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